Indian Gaurakshak Supporting Cow Slaughter: Vegan Day

गौमाता के नाम पर गौभक्षक बनता इण्डिया

आज 1 नवम्बर को जहाँ पूरा संसार विश्व शाकाहारी दिवस मना रहा है वहीं आज इण्डिया को भी जरूरत पड़ गयी है इस दिवस को मनाने की। आज जरूरत पड़ गयी है कि गौप्रेमी भारत, गौवंश की भलाई के लिए पूर्ण शाकाहारी हो जायें।

अपने स्वर्ण युग में जब भारत अपने विकास के चरम पर था और ऋषि मुनियों के ज्ञान से परिपूर्ण कृषि, चिकित्सा, कला के क्षेत्र मे अनेक सुधार लाये जा रहे थे तब कोई यह नहीं सोच सकता था कि आने वाले समय मे भारतवंशियों की ऐसी हालत हो जाएगी कि उन्हें राह चलता कोई भी कुछ भी सीखा जाएगा, और उनके भोलेपन का फायदा उठाएगा।
यह बात आज के परिपेक्ष्य मे भी उतनी ही ठीक बैठती है जितनी हिन्दुस्तान के गुलामी के दिनों मे ठीक बैठती है।

हिन्दुस्तान आज़ाद हो गया और इण्डिया बन गया पर हालत अभी भी वही है स्वार्थ, पन्थ की लड़ाई में सब यह ही भूल गए कि धर्म क्या है, परोपकार परम् धर्म का ज्ञान देने वाले हम भारतीय आज अंतरराष्ट्रीय लालचपन की कठपुतली बन चुके हैं।
आज बड़े बड़े कॉर्पोरेट्स हमारी संस्कृति का हमारी मान्यताओं का हमीं को गलत अर्थ समझा कर हम को लूट रहे हैं, यही नहीं हम सभी को इस दलदल में राजनैतिक पार्टियों और कॉरपोरेट्स ने ऐसा फसाया है कि अगर अब कोई सच भी बोल रहा होगा तो बहुत लोग मानेंगे ही नहीं।

आज वर्ल्ड वीगन डे( विश्व शाकाहारी दिवस) पर इण्डिया में २-३ मत हो सकते हैं पर इस तथ्य को बिल्कुल भी नहीं झुठलाया जा सकता कि इस वीगन की उपज तब हुई जब पश्चिमी सभ्यता को पशुओं पर हो रही क्रूरता का भान हुआ।
पशुप्रेम, प्रकृतिप्रेम वर्षों से भारत के अभिन्न अंग रहे हैं और तो और पशुओं की रक्षा के लिए सामाजिक के साथ साथ बौद्धिक स्तर पर भी कार्य किया गया, हमारे हर कर्मकाण्ड में प्रकृति को एक अटूट रिश्ते से जोड़ा जो आज भी किसी नए कानून से ज्यादा अच्छा कार्य करता है।

इसी पशु संरक्षण की कड़ी में गौरक्षा भी आती है, गौवंश भारतीयों के लिए क्या महत्व रखता है यह किसी को समझाने की बात नहीं पर आज गौरक्षा का जो रूप सभी को दिख रहा है उसके पीछे का लालच ओर भयानक सच बहुत ही कम लोगों को दिखता है और समझ आता है।
आपको यह कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं बताएगी की हमारे देश मे पशुक्रूरता तो दूरकी बात पूर्ण रूप से गौहत्या भी कभी कोई नहीं रोक पायेगा क्योंकि इसमें इण्डिया ही नहीं कईं विदेशी कंपनियों का पैसा लगा हुआ है।
इण्डिया का आज जो सबसे बड़ा डेरी(दुग्ध उत्पादन क्षेत्र) है वो भी इसी का एक हिस्सा है भले ही वो इस मंशा से ना हो पर इण्डिया में होने वाली गौहत्याओं का कसूरवार इण्डिया का अपना डेरी सेक्टर ही है।
आज गौ माता ना होकर एक वस्तु बन चुकी है आज सभी को यही सिखाया जा रहा है कि गौवंश एक ऐसा तरीका हैं जिससे सभी को फायदा पहुँच सकता है। पूरी प्रक्रिया के साथ और पूरे जोर शोर से इस काम को इण्डिया में फैलाया जा रहा है। कितने शोधकर्ता, नेता, कॉर्पोरेट, और बड़ी कंपनियाँ इसमे अपना सहयोग दे रहें हैं इनकी गिनती करना भी मुश्किल है।

पहले वे आपको गौवंश/भैंस के दूध के फायदे बतायेंगे- फिर आपको दूध बेचने या खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, किसी को पैसे के नाम से किसी को सेहत के नाम से। यह प्रक्रिया सुनने में जितनी सीधी लग रही है उतनी है नहीं। इससे गौवंश का उत्पीड़न हो रहा है और उसे बढ़ने का मौका भी मिल रहा है।

आजकल एक एक मवेशिपालक के पास १०-२० गाय हैं और वो उनका दूध निकलवा रहा है, कभी इंजेक्शन लगवा कर तो कभी उल्टे तरीकों से, राजनीतिक पार्टीयों को भी इकॉनमी उठाने(और कौन जाने खुद कंपनियों के साथ मिलकर ही पैसा बटोरने का) का तरीका मिल जाता है और वो गौवंश की नस्ल सम्वर्धन के नाम पर उनपर घिनौने प्रयोग करते हैं जिससे वो ज्यादा से ज्यादा दूध दे। नस्ल सम्वर्धन के नाम पर जो घटिया रिसर्च पूरे संसार मे चल रही है उसे शायद ही आज कोई पूरी तरीके से बंद करने को कहे क्योंकि मन मे विकास के नाम पर जो गन्द भर दी गयी है वो इसे कभी नहीं रुकने देगी।
फिर जब गाय बूढी हो जाती है तो यही डेरी बाले उसे रोड पर फेंक आते हैं और वो प्लास्टिक खाने के लिए मजबूर हो जाते हैं या फिर उसे कसाईं को बेच देते हैं अगर गलती से गौहत्या पर आपके क्षेत्र में कानून है तो वो रोड़ों पर लावारिस घूमने के लिए मजबूर होती है दोनों ही तरीके से उस प्राणी का जीवन तो बर्बाद ही हो जाता है। इसलिए गौहत्या पर कानून होने से कोई फर्क नहीं पड़ता इण्डिया में एक गाय की स्थिति गौमाता जैसी नहीं हो जाएगी।

उल्टा इस कानून से लोगों के असली चहरे सामने आ गए उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में लोग अब गाय की जगह भैसों को ज्यादा पालने लगे हैं क्योंकि बूढ़ी गाय या फिर उसके बछड़े को अब कसाईं को नहीं बेचा जा सकता, ये वही लोग है जो पशुपालन दूध बेचने के लिए करते हैं खुद के पीने के लिए नहीं। यही नहीं पूरे इण्डिया में स्वदेशी गायों में जहाँ एक ओर गिरावट देखने को मिली वहीं दूसरी तरफ भैंस और विदेशी गायों में बढ़ोतरी हुई है।

Cattle Census by DEPARTMENT OF ANIMAL HUSBANDRY

शायद ही आजके तथाकथित धर्म के ठेकेदार या गौरक्षक इतने दूरदर्शी हों जितने भारतीयों के वे पूर्वज जिन्हें पता था कि प्रकति हमसे नहीं हम प्रकृति से हैं। वर्षों पूर्व ही भारत के पूर्वजों ने दो बातें एकसाथ कहीं थी पहला गौ का दूध सबसे ज्यादा हितकारी है दूसरा गौदूध का व्यापार पाप यही नहीं विष्णु पुराण में जितना पुण्य गौ का बताया है उससे भी अधिक पाप उसके दूध के व्यापार का बताया है, शायद उन्हें ये पता था कि अगर गौवंश को व्यापार से जोड़ा तो गौवंश पर इतना अत्याचार होगा कि कोई जसे रोकने वाला भी नहीं होगा क्योंकि वो तो हम सब के लिए एक बेजुबान फायदे की चीज होगी। इसी बात का ध्यान रखते हुए उसे माता का दर्जा दिया गया और गाय का दूध ही नहीं बल्कि खुद गाय के लेन देन को ही पाप घोषित कर दिया।
पर अब ना वो महात्मा हैं और ना ही उनका ज्ञान आज तो इण्डिया में सभी को दूध की नदी बहानी है भले ही उससे पहले कितनी ही खून की नदियाँ बह जाएँ।

इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम्।
त्वष्टुं प्रजानां प्रथम जनित्रमग्ने मा हिंसीः परमे व्योमन् ॥
(यजुर्वेद अ० १२, मन्त्र ४०)

 इन ऊन रूपी बालों वाले भेड़, बकरी, ऊंट आदि चौपाये, पक्षी आदि दो पग वालों को मत मार

इसका सीधा सीधा उपाय यह है कि आप सभी अब मार्किट से दूध खरीदना बन्द करदें अपने बच्चों को शाक सब्जी व फल खिलाएं और जिसे दूध पीना है वो खुद गाय पाले , ना कि सेहत के नाम पर किसी दूसरे प्राणी के स्तनों पर झपटने के लिए कंपनियों को पैसा दें। इन कम्पनियों ने गौवंश को सड़कों पर घूमने वाले कुत्ते के जैसा बना दिया।

गौदान, दुग्ध्दान की महिमा अभी कम नहीं हुई है इसे बढ़ाने की जरूरत है जिससे किसानों को पोषण भी मिले और गौवंश को भारी शोधों से गुजरना भी ना पड़े। दूध पीना बुरा नहीं है पर जब आपकी आदत के कारण कोई दूसरा पीड़ा सह रहा हो तो उसकी मन की बद्दुआ से कब टीम बचोगे।
पशुपालन जीवन जीने का तरीका हो सकता है व्यापर करने पर तो यह भी अधर्म ही कहलाता है जहाँ एक प्राणी का जीवन हम चन्द कौड़ियों के भाव मे रखते हैं ।

दानानामपि सर्वेषां गवां दानं प्रशस्यते ।
गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्च पावनं ह्येतदुत्तमम् ॥
(महाभारत, अनुशासन पर्व 83-3)

गायों का दान अन्य सभी से श्रेष्ठ है। गायें सर्वोच्च और पवित्र होती हैं।

सुरां मत्स्यान्मधु मांसमासवकृसरौदनम् ।
धूर्तैः प्रवर्तितं ह्येतन्नैतद् वेदेषु कल्पितम् ॥
(शान्तिपर्व २६५।९॥)

सुरा, मछली, मद्य, मांस, आसव, कृसरा आदि खाना धूर्तों ने प्रचलित किया है, वेद में इन पदार्थों के खाने-पीने का विधान नहीं है ।

जहाँ तक बात रहीं राजनीतिक पार्टियों की तो उनका तो मतलब सिर्फ पैसे से है गौमाता से नहीं उन्हें देश की तथाकथित अर्थव्यवस्था उठानी है लोगों के सहारे नहीं तो गौवंश के सहारे ही, वे संवेदनहीन प्राणी हैं जो अपने तुच्छ लाभ के लिए दंगे करवा सकते हैं एक प्राणी को बीच बाजार में अपना मत दिखाने के लिए कटवा सकते हैं उनसे यह आशा रखना की वे इस उत्पीड़न के खत्म होने के लिए कुछ करेंगे एक बड़ी बेवकूफी होगी। नेताओं के ऐसे किस्से तो रोज ही दिख जाते हैं; जिन हाथ वालों ने कभी गाय के नाम पर वोट माँगा था उनकी गाय के प्रति संवेदनशीलता २०१७(2017) में केरल में उनकी हरकतों से दिख गयी थी, फूल वालों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी गाय के दूध की धड़ल्ले से बिक्रि बढ़ाने में, उन्होंने भी कितने ही प्लांट खोले नसलसमवर्धन के नाम पर

हाँ पर सबसे बड़े अधर्मी और नीच वो लोग कहलाएँगे जो एक तरफ तो गौरक्षा के नाम पर आज गौमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित करना चाहते हैं पर दूसरी तरफ खुद प्रोटीन और सेहत के नाम पर दुकान से दूध की थैली खरीदकर लायेंगे और डेरी वालों में गौवंश को तड़पाने के लिए रोज पैसे बटेंगे।
क्यों ना आज इस शुभ दिन हम सभी यह प्रण लें कि कभी परजीव को आहत नहीं करेंगे और गौमाता के नाम पर हो रहे इस गौभक्षण का विरोध करेंगे। दुकानों से कम्पनियों का दूध नहीं खरीदेंगे, हो सके तो स्वयं एक गाय पालेंगे(कोई आवारा हो तो ओर भी उत्तम होगा), और अगर ज्यादा ही है तो एक छोटे गौपालक से ही दूध खरीदेंगे।

मनुर्भुवः

अपने विचार हमें बताएँ

कुटुम्ब app पर हमसे जुड़ें 👉 Environment India और हर दिन की भारत के पर्यावरण से सम्बंधित खबर अपने फॉन पर पाएँ

हमारे वट्सऐप ग्रुप से जुड़ें 👉एनवायरनमेंट इंडिया

🌱🇮🇳🌱

Environment India पारिस्थितिक जागरूकता के लिए एक अखिल भारतीय स्वयंसेवक पहल है जो समाज में सांस्कृतिक पर्यावरणवाद को शामिल करने के लिए निरन्तर कार्य कर रही है। आपका समर्थन हमें आपको यह मुफ्त सेवा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके लिए आपको बस हमें फॉलो करना है और हर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इन को अपनी तरफ से साझा करना है, जिससे कि ऐसी खबरों पर सभी का ध्यान जाए, और ये मुद्दे दब ना जाएँ।
आप पर्यावरण और वन्यजीवन से संबंधित विषयों पर प्रकाशित करने के लिए अपने विचारों और लेखों को भी साझा कर सकते हैं।

Leave a comment